📘 ❞ औरत के हक में ❝ كتاب ــ تسليمة نسرين اصدار 2007

فكر وثقافة - 📖 كتاب ❞ औरत के हक में ❝ ــ تسليمة نسرين 📖

█ _ تسليمة نسرين 2007 حصريا كتاب ❞ औरत के हक में ❝ عن جميع الحقوق محفوظة للمؤلف 2025 में: पुरुष शासित समाज स्त्रियों अधिकार और नारी मुक्ति को लेकर चाहे जितने बड़े दावे पेश किये जायें, नारे लगाये जायें जितनी बातें की बांग्लादेश लेखिका तसलीमा नसरीन का स्वर, निस्सन्देह, सबसे भास्वर है। उनके लेखन तेवर सर्वाधिक व्यंग्य मुखर तिलमिला देने वाला संस्कार मुक्त प्रतिवादी बेबाक ने अपने 'निर्वाचित कलाम' द्वारा एक ज़बरदस्त हलचल सी मचा दी जैसा कि तय था, विवाद केन्द्र आ गयीं। इस अप्रतिम रचना आनन्द पुरस्कार से सम्मानित जाने ख़बर सारे देश कृति प्रति स्वभावतः कौतूहल गया। उक्त साथ इसी विषय पर लिखित अन्य लेखों भी प्रस्तुत संस्करण सम्मिलित कर लिया गया बचपन अब तक निर्मम, नग्न निष्ठुर घटनाओं अनुभवों आलोक नये सवाल उठाये गये हैं, जिनसे समान अधिकारों सार्थक एवं निर्णायक प्रस्थान प्राप्त हुआ दुर्दशा हू ब चित्रण स्त्री भोग्या मात्र है धर्मशास्त्रों उसके पाँवों बेड़ियाँ डाल रखी हैं। ईश्वर कल्पना परोक्षतः पीड़ा समर्थन किया सामाजिक रूढ़ियों पालन में, दाम्पत्य जीवन प्रत्येक क्षेत्र यानी किसी मामले पुरुषों लालसा, नीचता, आक्रामकता निरंकुश भाव खुलेआम चुनौती अपनी दुस्साहसपूर्ण भाषा शैली दो टूक अन्दाज़ विचारों तरह रखा पाठक एकबारगी उठता है। فكر وثقافة مجاناً PDF اونلاين الثقافة تعني صقل النفس والمنطق والفطانة حيث أن المثقف يقوم نفسه بتعلم أمور جديدة كما هو حال القلم عندما يتم بريه هذا القسم يشمل العديدة من الكتب المتميزة الفكر والثقافة تتعدّد المعاني التي ترمي إليها اللغة العربية فهي ترجِع أصلها إلى الفعل الثلاثي ثقُفَ الذي يعني الذكاء والفطنة وسرعة التعلم والحذق والتهذيب وتسوية الشيء وإقامة اعوجاجه والعلم والفنون والتعليم والمعارف

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औरत के हक में
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ــ تسليمة نسرين

صدر 2007م
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ــ تسليمة نسرين

صدر 2007م
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تسليمة نسرين ✍️ المؤلفة
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عن كتاب औरत के हक में:
पुरुष शासित समाज में स्त्रियों के अधिकार और नारी मुक्ति को लेकर चाहे जितने बड़े-बड़े दावे पेश किये जायें, नारे लगाये जायें और चाहे जितनी बातें की जायें, बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन का स्वर, निस्सन्देह, सबसे भास्वर है। उनके लेखन का तेवर सर्वाधिक व्यंग्य मुखर और तिलमिला देने वाला है। संस्कार मुक्त प्रतिवादी और बेबाक तसलीमा ने अपने 'निर्वाचित कलाम' द्वारा बांग्लादेश में एक ज़बरदस्त हलचल सी मचा दी और जैसा कि तय था, विवाद के केन्द्र में आ गयीं। इस अप्रतिम रचना को आनन्द पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की ख़बर से सारे देश में इस कृति के प्रति स्वभावतः कौतूहल गया। उक्त रचना के साथ उनके द्वारा इसी विषय पर लिखित उनके अन्य लेखों को भी प्रस्तुत संस्करण में सम्मिलित कर लिया गया है। इस कृति में तसलीमा के बचपन से लेकर अब तक की निर्मम, नग्न और निष्ठुर घटनाओं और अनुभवों के आलोक में नये सवाल उठाये गये हैं, जिनसे स्त्रियों के समान अधिकारों को एक सार्थक एवं निर्णायक प्रस्थान प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत कृति में पुरुष शासित समाज में स्त्रियों की दुर्दशा का हू-ब-हू चित्रण है। स्त्री-भोग्या मात्र है और धर्मशास्त्रों ने भी उसके पाँवों में बेड़ियाँ डाल रखी हैं। ईश्वर की कल्पना तक में परोक्षतः नारी-पीड़ा का समर्थन किया गया है। सामाजिक रूढ़ियों के पालन में, और दाम्पत्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यानी स्त्रियों के किसी भी मामले में पुरुषों की लालसा, नीचता, आक्रामकता और निरंकुश अधिकार भाव को तसलीमा ने खुलेआम चुनौती दी है। अपनी दुस्साहसपूर्ण भाषा-शैली और दो टूक अन्दाज़ में अपने विचारों को इस तरह रखा है कि पाठक एकबारगी तिलमिला उठता है।
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